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“Abdul Kalam ki Jivani : सफलता की कहानियों का एक अनमोल खजाना!”

“Abdul Kalam Ki Jivani”

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Abdul Kalam ki Biography

अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो, तो पहले सूरज की तरह जलना सीखो।” 

ये वाक्य ही अपने आप में हर इंसान के अंदर कितनी स्फूर्ति भर देता है; या फिर चाहे आप इस वाक्य पर गौर करें- “सपने वे नहीं हैं, जो हम नींद में देखते हैं; बल्कि सपने वे होते हैं, जो हमें सोने नहीं देते।”  जी हाँ दोस्तों, आज हम ऐसे ही मिसाइल मेन अब्दुल कलाम की जीवनी “मेरी जीवन यात्रा” के बारे में बात करने वाले हैं। 

रामेश्वरम में पेपर बेचने वाले एक आठ साल के साधारण से लड़के से लेकर राष्ट्रपति बनने तक का Abdul Kalam जी का जो सफ़र रहा है; वो अपने आप में इतना प्रेरक रहा है कि Abdul Kalam जी की जीवन यात्रा से सीख लेकर आप सभी अपनी जीवन यात्रा को अविश्मरणीय और अद्वितीय बना सकते हैं। Dr. Abdul Kalam ki biography – मेरी जीवन यात्रा, इस किताब से आप सभी को इस बात का ज्ञान मिल सकता है कि एक आम इन्सान से एक ख़ास insaan कैसे बना जाता है। आज आप सभी को डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा लिखित My Journey से जुड़ी बातें आप सभी के समक्ष रखने वाला हूँ। इस किताब के हिन्दी संस्करण का नाम है “मेरी जीवन यात्रा-कलाम की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी”

अब्दुल कलाम जी के पिता

रामेश्वरम की गलियां, वहां के मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर, वहां के नारियल के ऊंचे ऊंचे पेड़, ये सब कुछ Abdul Kalam जी के बचपन के दिनों के गवाह रहे हैं। इसी रामेश्वरम में उनके पिता जैनुलाबदीन की दिनचर्या सुबह 4:00 बजे से आरंभ हो जाती थी। 

भारत के दक्षिणी तट पर स्थित होने के कारण यहां सुबह जल्दी हो जाती थी। सुबह की रोशनी से पहले ही उनके पिता नमाज पढ़ लिया करते थे। Abdul Kalam जी के पिता बहुत पढ़े लिखे तो नहीं थे और उन्होंने जिंदगी में कोई बहुत ज्यादा धन दौलत भी नहीं कमाया, पर हां वह एक अच्छे इंसान जरूर थे; उनके व्यवहार में सज्जनता देखी जा सकती थी।जीविका के रूप में उनके पिताजी का काम नाव चलाने का था । वे रामेश्वरम तथा धनुष कोटी के बीच यात्रियों को लेकर आने जाने का काम करते थे यह दूरी लगभग 22 किलोमीटर के आसपास थी। 

उनके पिता जैनुलाबदीन के समक्ष कोई भी अपनी समस्या लेकर आता था। हमेशा वह लोगों की समस्याओं का समाधान किया करते थे। उनके पास जो कोई भी आता था उन्होंने कभी किसी को मन नहीं किया। लोगों का मानना था कि उनका संबंध खुदा से जुड़ा हुआ है। खुद Abdul Kalam को भी जीवन की कठिन परिस्थितियों में या फिर असफलताओं के क्षणों में उनके पिता ने अच्छी सलाह दी, एक अच्छी राह दिखाई; ये सलाह कलाम जी के अंदर एक अलग तरह की ऊर्जा का संचार कर देती थी।

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए Abdul Kalam जी ने कहा है “जब मैं दिल्ली में था, तो वहां दिल्ली के आवास में अर्जुन का एक विशाल पेड़ था। इस पेड़ की सुंदरता, भव्यता और उसका  अस्तित्व बिल्कुल मुझे मेरे पिताजी की याद दिलाती थी; और मैं चुपचाप इस पेड़ से बातें करता रहता था। एक बार मैंने यह सोच कर एक कविता लिखी, अगर ये पेड़ मुझसे कुछ कहता तो क्या कहता। वह कविता इस प्रकार है- 

ओ मेरे दोस्त कलाम 

मैं तुम्हारे मां-बाप की तरह सौ बरस पर कर चुका हूं 

हर सुबह तुम एक घंटे तक मेरे साथ रहते हो 

मैं तुम्हें चांदनी रातों में भी देखता हूं

तुम ख्यालों में डूबे टहलते हो 

मेरे दोस्त मैं तुम्हारे विचारों व भावों को जानता हूं 

मैं तुम्हें क्या दे सकता हूं!

अपने पिता की याद में कलाम द्वारा लिखी गई यह भावनात्मक कविता यह इस बात का एहसास कराती है कि Abdul Kalam अपने के पिता के साथ किस हद तक जुड़े हुए थे ।

कलाम की मां और बहन

Abdul Kalam की मां एक सीधी-साधी और साधारण जीवन जीने वाली एक धार्मिक महिला थी।समय पर नमाज पढ़ना, उनकी पहली प्राथमिकता थी। उनका मुख्य काम सारे परिवार की जिम्मेदारी को संभालना था। उनकी मां का नाम आशियम्मा था। कई वर्ष पहले कलाम ने अपनी मां के लिए एक कविता लिखी थी; जिसकी शुरुआती पंक्तियां इस प्रकार थी –

सागर की लहरें, सुनहरी रेत, यात्रियों की आस्था 

रामेश्वरम की मस्जिद वाली गली 

सब आपस में मिलकर एक हो जाती हैं वह है मेरी मां!

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खाद्य पदार्थ की काफी कमी होने लगी। इसलिए सभी के लिए राशन कार्ड का कोटा तय कर दिया गया। जिसकी वजह से खाद्य सामग्री की काफी किल्लत होने लगी। एक बार Abdul Kalam काफी थके- हारे घर आए और उनकी मां जब उन्हें खाना परोस रही थी तब वो मां के हाथों से गरम-गरम रोटियां लेकर खाते जा रहे थे। जब उनका पेट भर गया तो वह उठे और हाथ धोने के लिए चले गए। तब उनके बड़े भाई उन्हें कोने में ले जाकर के कहा, “क्या तुम जानते हो, हम सबको राशन का सीमित हिस्सा ही मिलता है उस हिसाब से घर के हर सदस्य के हिस्से में सिर्फ दो-तीन रोटियां ही आती है। माँ तो कुछ बोलेगी नहीं और तुम चुपचाप खाते जा रहे थे। तुम्हारी वजह से आज मां भूखी रह गई। माँ के लिए कुछ बचा ही नहीं।” 

यह बात सुनकर Abdul Kalam बुरी तरह से टूट गए। उनके भाई ने उन्हें नसीहत दी कि ‘कुछ भी खाने से पहले दूसरों के बारे में सोचूं।” अपनी मां के त्याग से Abdul Kalam काफी द्रवित हुए, साथ ही उन्होंने यह भी महसूस किया कि हर इंसान के अंदर अगर एक मां का हृदय हो जाये तो दुनिया में हर तरफ कितनी शांति हो और कोई युद्ध भी ना हो।

Abdul Kalam के जीवन में जो दूसरी महिला का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा, वह थी उनकी बड़ी बहन ज़ोहरा। ज़ोहरा अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी और वह उनकी मां की तरह ही कलम से बहुत प्यार करती थी। ज़ोहरा की शादी जलालुद्दीन से हुई थी। जलाउद्दीन ही वह शख्स थे जिन्होंने कलाम के टैलेंट को सबसे पहले पहचाना, कलाम की सोच को एक नई दिशा प्रदान की और हमेशा कलाम का मार्गदर्शन किया।

अहमद जलालुद्दीन का कलाम के जीवन में प्रवेश

रामेश्वरम प्राचीन काल से ही एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है। ऐसी मान्यता है कि रामचंद्र जी ने सीता को रावण से छुड़ाने के लिए यही से लंका तक का पुल बनाया था। रामेश्वर का मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इस मंदिर में जो लिंग का स्वरूप है, उसको सीता जी ने स्वयं बनाया था। लोग जब शहर रामेश्वर में यात्रा करने के लिए आते थे तो धनुषकोडी भी अवश्य जाते थे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनके पिता ने नाव से तीर्थ यात्रियों को यात्रा कराने का काम प्रारंभ करना चाहा,  इसके लिए सबसे पहली जरूरत थी एक नाव के निर्माण की। इसलिए उन्होंने वही समुद्र के किनारे नाव बनाने का कार्य प्रारंभ किया।कुछ समय पश्चात कलाम जी के दूर के रिश्ते के भाई अहमद जलालुद्दीन Abdul Kalam के पिताजी की मदद करने के लिए रोज आने लगे। वह आयु में कलाम से कुछ बड़े थे, परंतु कुछ समय पश्चात वह दोनों अच्छे मित्र बन चुके थे। जलालुद्दीन को अंग्रेजी लिखना व पढ़ना अच्छे से आता था। जलालुद्दीन को और भी कई विषयों की अच्छी जानकारी थी। इसलिए वह कलाम से वैज्ञानिकों के बारे में,  उनके अनुसंधान के बारे में, साहित्य और चिकित्सा से जुड़े विषयों के बारे में अक्सर चर्चा किया करते थे। उन्होंने Abdul Kalam को बहुत सारी विषयों की जानकारी दी।

कुछ समय पश्चात Abdul Kalam की बहन ज़ोहरा की शादी जलालुद्दीन के साथ हो गई। जलालुद्दीन इस बात को अच्छे से समझ चुके थे कि Abdul Kalam की सोच रामेश्वरम के स्कूल तक ही सीमित नहीं थी। इसलिए उसने कलाम जी के पिताजी से बात करके उच्च शिक्षा के लिए रामनाथपुरम भेजने की सलाह दी। जहां कई बेहतर और अच्छे स्कूल थे। अपनी शिक्षा को रामनाथपुरम में समाप्त करने के पश्चात Abdul Kalam ने इंजीनियरिंग की उच्च शिक्षा के लिए मद्रास प्रौद्योगिकी प्रौद्योगिकी संस्थान MIT में दाखिला लिया। कलम को MIT में दाखिला दिलवाने के लिए उनकी बहन जोहर ने साहूकार के पास अपने जेवर गिरवी रखें। Abdul Kalam ने कड़ी मेहनत करके स्कॉलरशिप हासिल किया और अपनी बहन के गहनों को साहूकार के पास से छुड़वाया ।

कलाम की पहली कमाई

जब Abdul Kalam की उम्र महज आठ साल की थी, उस समय उन्होंने महसूस किया कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। कलाम  काफी ज्यादा दुखी थे, उनके मन में चलता रहता था कि आखिर वो इसके लिए क्या कर सकते हैं? आठ साल के मासूम बच्चे को भला कोई नौकरी कैसे दे सकता था? कलाम के एक चचेरे भाई थे जिनका नाम था शमसुद्दीन। शमसुद्दीन की एजेंसी के द्वारा पेपर बांटने का काम किया जाता था। जलालुद्दीन की तरह कलाम के जीवन पर शमसुद्दीन का भी काफी प्रभाव पड़ा था। उस समय द्वितीय विश्व युद्ध का दौर चल रहा था, जिसकी वजह से वहां के स्टेशन पर ट्रेन को रोकना बंद कर दिया गया था।समाचार मिलने का सिर्फ़ एक ही माध्यम था – पेपर। शमसुद्दीन ने कलाम को सलाह दी, जब गाड़ी रामेश्वरम और धनुषकोटी के मार्ग पर पहुंचेगी तो चलती ही ट्रेन से अखबार के बंडल को नीचे फेंक दिया जाएगा। कलम उस बंडल को उठाकर शहर के हर हिस्से  में लोगों को बाँट देंगे। कलाम को यह काम बहुत पसंद आया। वह रोज सुबह अखबार के बंडल को उठाते और शहर पेपर बांटने के बाद कलम स्कूल चले जाते। कलाम की मां ने उन्हें कई बार यह काम करने से रोका,लेकिन कलाम नहीं मानें। कलाम जानते थे उनकी यह थोड़ी सी कमाई घर के खर्चे में काफी सहायक सिद्ध हो रही है। इस तरह से कलाम ने आठ वर्ष की अल्प आयु में ही घर की आय में योगदान देना प्रारंभ कर दिया था।

कलाम के जीवन के तीन संकटमोचन व्यक्ति

रामेश्वरम जैसे छोटे से शहर में अधिकतर परिवार हिंदुओं के थे। रामेश्वरम जाना भी जाता है हिंदू तीर्थ स्थलों के लिए। यहां पर कुछ आबादी मुसलमान की थी, तो कुछ आबादी क्रिश्चियन के भी थे; लेकिन यहां पर कभी भी कोई धार्मिक दंगे नहीं हुए थे। पेपर के माध्यम से कलम को देश के अन्य हिस्सों में होने वाले धार्मिक युद्ध की जानकारी मिलती थी। कलाम को बहुत ताज्जुब होता था ऐसा आखिर क्यों हो रहा है; क्योंकि कलाम ने कभी अपने शहर में इस तरह के धार्मिक उन्माद को नहीं देखा था। रामेश्वरम में इस प्रकार की शांति को बनाए रखने तीन महत्व्वपूर्ण लोगों का योगदान था, उनमें से एक खुद उनके पिताजी थे जो की एक मस्जिद में ईमाम भी थे। रामेश्वरम  में हर आदमी उनकी इज्जत किया करता था। 

जो दूसरे इंसान थे, वो थे रामनाथ स्वामी मंदिर के पुरोहित पक्षी लक्ष्मण शास्त्री थे।वे सिर्फ पुजारी ही नहीं थे बल्कि उन्हें वेदों का भी अच्छा ज्ञान था। कलाम के जीवन पर इनका भी बहुत प्रभाव पड़ा। कई बार कलाम ने इनसे सलाह लिया  और वह उचित सलाद देते भी थे। 

तीसरे व्यक्ति फादर बोदल थे, जो शहर के चर्च के पादरी थे। वह हमेशा चर्च में आने वाले लोगों के हित के बारे में सोचते थे तथा सब की भलाई के के लिए कार्यरत थे।

यह तीनों लोग हर शुक्रवार को शाम 4:30 बजे आपस में मिलते थे तथा धर्म पर चर्चा करते थे। वह अपने शहर में फैलने वाली किसी भी आशंका या अफवाह को अपनी समझदारी से दूर करते थे, जिससे शहर में शांति का माहौल बना रहता था।

Conclusion

डॉ कलाम का व्यक्तित्व उनका जीवन बहुत कुछ सिखाती है। अपने जीवन में उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया। कठिन परिश्रम, अध्ययन करना व सीखना और सद्भावना रखना तथा क्षमा कर देना यह सब कलाम जी के जीवन के मिल के पत्थर थे। यह सभी चीजें हर किसी के जीवन में भी काफी महत्वपूर्ण होती है और अगर यह चीज हैं तो जीवन में काफी बदलाव भी भी लाया जा सकता हैं। 

जहाँ पर आप को कलाम के जीवन से प्रेरणा लेकर बहुत सारी चीजें सीख सकते हैं, वहीं पर बिज़्नेस से जुड़ी बातों को रॉबर्ट कियोसाकी  की बेहतरीन बुक The Business of the 21st Century से सीख सकते हैं।

FAQ

Q1. डॉक्टर अब्दुल कलाम जी का जन्म कब हुआ था ?

कलाम जी का जन्म रामेश्वरम के धनुषकोडी गाँव में एक तमिल मुस्लिम परिवार में 15 October 1931 को हुआ था।

Q2. अब्दुल कलाम जी का पूरा नाम क्या है?

अब्दुल कलाम जी का पूरा नाम है – अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम है।

Q3. अब्दुल कलाम क्यों प्रसिद्ध थे ?

डॉक्टर अब्दुल कलाम देश के ११वें राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल २००२ से २००७ तक का था।  इसके साथ ही वो प्रसिद्ध वैज्ञानिक,शिक्षक और लेखक रहें हैं। 

Q4. अब्दुल कलाम ने किस चीज़ का आविष्कार किया?

अब्दुल कलाम ने पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग, ब्रह्मोस समेत कई मिसाइलों का निर्माण किया। उनकी उपलब्धियों के कारण उन्हें मिसाइल मैन भी बुलाया जाता है।

Q5.अब्दुल कलाम की याद में कौन सा दिवस मनाया जाता है?

अब्दुल कलाम जी का जन्म 15 October 1931 को तमिलनाडु में हुआ था। उनकी महान उपलब्धियों के कारण हर वर्ष 15 अक्टूबर को छात्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अच्छी बुक को अपना दोस्त बनाइये और आगे बढ़ते रहिए।

धन्यवाद

Abdul Kalam द्वारा लिखी गई इस बुक से आप भी अपने जीवन में बदलाव लाना चाहते हैं या इस बुक को पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक के थ्रू इसका इसकी इसका पूरा डिटेल्स प्राइस या रिव्यू देख सकते हैं।

 

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