Harivansh rai bachchan ki Madhushala अपने आप में एक अदभुत काव्य संग्रह है। भारत की धरती पर एक से बढ़ कर एक ज्ञानी पुरुष पैदा हुए हैं।जिन्होंने हमारे समक्ष ज़िंदगी को कैसा जिया जाए, इस चीज़ को बखूबी समझाने का प्रयास किया है और वे अपने मकसद में पूरी तरह से सफल भी रहे हैं। मगर जब हम खुद ही अपने प्रति जागरूक ना रहें तो कोई भी, कुछ भी नहीं कर सकता है। आज इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए मैं एक रचना का जिक्र करना चाहूंगा, जिसका नाम है मधुशाला। मधुशाला हरिवंश राय बच्चन जी की एक प्रकार से अमृत गाथा है। हरिवंश राय बच्चन की जितनी भी भी काव्य रचना या शायरी है, वो सभी अपने आप में अदभुत है। मगर मधुशाला कभी ना भुलाई जाने वाली रचना है।
मधुशाला आम जनमानस के समक्ष एक काव्य सम्मेलन के जरिए आई। बात दिसम्बर १९३३ की है, जब शिवाजी हाल, काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पहली बार बच्चन ने अपनी मधुशाला का पाठ किया था। जैसे ही बच्चन जी ने मधुशाला का पाठ सुनाना शुरू किया तो सभी श्रोतागण मस्ती में झूम उठे, उस शाम बच्चन जी को सुनकर सभी नवयुवक पागल हो रहे थे।
मधुशाला किताब में एक जगह पर यह लिखा हुआ है कि उस वक्त सम्मेलन के दौरान जो भी श्रोतागण थे, वे बच्चन के प्याले की गहराई तक नहीं पहुंच सकते थे।वह प्याले की सतह तक ही उतर कर रह जाते हैं।
हकीकत तो यह है कि आज भी बहुत सारे लोग ऐसे हो सकते हैं जो की मधुशाला के प्याले की गहराई तक ना पहुंच पाते हो। मधुशाला के बारे में दीप त्रिवेदी जी का कहना है कि “मधुशाला अपने आप में एक महाकाव्य है। यदि मैं कहूं की भागवत गीता एक ब्यूटीफुल काव्य है । ताव ते चिंग एक ब्यूटीफुल काव्य है, अष्टावक्र गीता एक ब्यूटीफुल काव्य है तो इस जगत में सीधे चौथे नंबर पर मधुशाला आती है यह भी अपने आप में एक ब्यूटीफुल काव्य है”
जो शायर होते हैं उनके विचार अक्सर मदिरा और स्त्री के आसपास घूमते रहते हैं लेकिन इन्हीं के बीच वह इतनी गहरी बात कह जाते हैं जो हर कोई आसानी से समझ नहीं पाता। इसीलिए मधुशाला के किताब को पढ़ने के बाद या फिर मधुशाला की पंक्तियां सुनने के बाद अक्सर लोग इसके ऊपरी सतह पर व्व्यक्त मदिरा का जिक्र सुनकर ही लोग आनंदित महसूस करते हैं। मधुशाला की गहराई में छुपे हुए बात को अक्सर वह समझ नहीं पाते।
बच्चन जी की रचना मधुशाला को अधिकांश लोग मदिरा और मदिरालय से जोड़कर के देखते हैं जबकि असलियत में ऐसा नहीं है। बच्चन जी जरूर एक आध्यात्मिक व्यक्ति रहे होंगे जिन्होंने सरल शब्दों में एक इतनी बड़ी महाकाव्य की रचना कर डाली। अगर आप मदिरा शब्द को आत्मा से जोड़ करके देखेंगे तो आपको बहुत ही आसानी से परमात्मा तक पहुंचाने का रास्ता मिल जाएगा इस महाकाव्य से।
मधुशाला 135 रूबाइयों का एक महाकाव्य है। हरिवंश राय बच्चन जी ने मधुशाला के बारे में लिखते हुए कहा है यह एक ऐसी कविता है जिसमें हमारे आसपास का जीवन संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊंचाइयां से गूंजता प्रतीत होता है।”
इस मधुशाला में जो 135 रूबाइयां है, वह कुछ साधारण रूबाइयाँ नहीं हैं, बल्कि इसमें दिए गए मदिरा का पान करके आप अपने जीवन को आध्यात्मिक उन्नति पर ला सकते हैं। क्योंकि जीवन की मदिरा जो हमें विवश होकर पीनी पड़ती है वह बहुत कड़वी होती है मगर यह मधुशाला की जो मदिरा है वह एक्चुअल मदिरा के नशे को उतार देगी और नियति के क्रूर, कुटिल आघातों से रक्षा करेगी।
मधुशाला की १३५ रूबाइयों में से कुछ का जिक्र कर रहा हूं। बाकी आप मधुशाला की किताब से पढ़ सकते हैं। लेकिन जिंदगी में कोई भी चीज पढ़ने या सुनने से कुछ भी नहीं होने वाला। पहले उसको समझना पड़ेगा और अपने आप को उसे एक करना पड़ेगा। उस विचार को अपने अंदर उतारना पड़ेगा। तभी आपके अंदर एक अद्भुत परिवर्तन दिख पाएगा। यहाँ पर मधुशाला की कुछ पंक्तियों का मैं ज़िक्र कर रहा हूँ। पूरी मधुशाला आप बच्चन जी के मधुशाला किताब से पढ़ सकते हैं।
मधुशाला की महत्तवपूर्ण पंक्तियाँ
मदिरा ले जाने को घर से चलता है पीने वाला, किस पथ से जाऊं? असमंजस में है वह भोला भाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूं , राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला । ये मधुशाला की कुछ पंक्तियाँ थी। आप अगर मधुशाला का सही अर्थ समझना चाहते हैं, तो आप सभी को दीप त्रिवेदी जी का विडीओ देखना चाहिए।
Harivansh rai bachchan ki Madhushala
अगर आप हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला पढ़ना चाहते हैं तो इस लिंक के थ्रू चेक करें।
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