Sadhguru’s Previous Birth Story in Hindi | सद्ग़ुरु का पिछला जन्म

Sadhguru’s Previous Birth Story in Hindi | सद्ग़ुरु का पिछला जन्म

Sadhguru’s Previous Birth Story काफ़ी रोमांच और साहस से भरा हुआ है। आज के समय में अगर कोई सबसे मुश्किल काम है, तो वह है सही गुरु की पहचान करना। लोग कहते हैं —

“जैसे एक शिष्य को सच्चे गुरु की तलाश होती है, वैसे ही गुरु को भी सच्चे शिष्य की।”

लेकिन भागदौड़ भरी इस ज़िंदगी में अब शिष्य में इतना धैर्य नहीं रहा कि वह सही गुरु की प्रतीक्षा कर सके। ऐसे में वह अक्सर प्रसिद्धि देखकर किसी गुरु की ओर आकर्षित होना कोई बड़ी बात नहीं है, बिना यह जाने कि वह मार्गदर्शक सच्चे ज्ञान का धनी है भी या नहीं।

इसी संसार में एक ऐसे गुरु हैं जिनकी दृष्टि व्यापक है, जो एक योगी, प्रकृति प्रेमी, युगदृष्टा और मानवतावादी हैं — सदगुरु जग्गी वासुदेव
आज हम उनके पिछले तीन जन्मों की अद्भुत कहानी को समझने का प्रयास करेंगे, जिसका वर्णन उन्होंने स्वयं अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Inner Engineering” में किया है।

सदगुरु का पहला जन्म : बिल्वा – विद्रोही शिव भक्त

लगभग 400 साल पहले, मध्य प्रदेश के रायगढ़ क्षेत्र में बिल्वा नाम का एक व्यक्ति रहता था।
वह शारीरिक रूप से बलवान, निडर और स्वतंत्र विचारों वाला था। बिल्वा का जन्म एक सपेरों के कबीले में हुआ था, और वह समाज की जाति व्यवस्था से बेहद दुखी था।

उसने समाज के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई, जिसकी वजह से वो समाज के कई गणमान्य लोगों की नजर में आ गया, और उसे मृत्युदंड दिया गया।
उसे एक पेड़ से बांधकर उसी के पाले हुए साँप से डसवाया गया। मृत्यु के क्षणों में बिल्वा ने अपनी साँसों पर पूर्ण सजगता से ध्यान लगाया।
वह शिवभक्त था, लेकिन कोई साधना नहीं की थी। फिर भी उसने संपूर्ण जागरूकता के साथ शरीर का त्याग किया — यही जागरूक मृत्यु उसकी आगामी जन्म यात्रा की दिशा तय कर गई।

दूसरा जन्म : शिवयोगी – कठोर तपस्वी साधक

बिल्वा के अगले जन्म में वे एक शिवयोगी के रूप में जन्मे।
पिछले जन्म की सजग मृत्यु के कारण इस जन्म में उन्होंने अद्भुत योगिक क्षमता प्राप्त की।
उन्होंने कठोर तप किया और अपने भीतर गहन योगिक शक्तियाँ विकसित कीं।

एक दिन जब शिवयोगी ध्यान में लीन थे, तभी दक्षिण भारत के महान संत पलनी स्वामी वहाँ से गुज़रे।
उन्होंने शिवयोगी के अद्भुत समर्पण को देखा और समझ गए कि यह व्यक्ति केवल शिव को ही स्वीकार कर सकता है।
इसलिए पलनी स्वामी स्वयं आदि योगी शिव के रूप में उनके सामने प्रकट हुए।

शिवयोगी ने पूरे समर्पण भाव से उन्हें स्वीकार किया।
पलनी स्वामी ने अपनी छड़ी से उनके आज्ञा चक्र (माथे) को छुआ, और उसी क्षण शिवयोगी उस परम अवस्था में पहुँच गए जिसकी खोज वे वर्षों से कर रहे थे।

हालाँकि इस मुलाकात के बाद वे फिर कभी नहीं मिले, लेकिन इसी क्षण पलनी स्वामी ने उनके भीतर वह बीज बोया, जो आगे चलकर ध्यानलिंग की स्थापना का कारण बना।

शिवयोगी ने सत्तावन वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया, परंतु गुरु बनने और ध्यानलिंग स्थापित करने का सपना उनके अगले जन्म के लिए शेष रह गया।

तीसरा जन्म : सद्‌गुरु श्री ब्रह्मा – दिव्यदर्शी योगी

बीसवीं सदी की शुरुआत में वही आत्मा सद्‌गुरु श्री ब्रह्मा के रूप में पुनः अवतरित हुई।
वे दक्षिण भारत के एक दिव्यदर्शी योगी के रूप में प्रसिद्ध हुए।
इस जन्म में भी उन्होंने ध्यानलिंग की स्थापना का संकल्प लिया, परंतु समाज के विरोध के कारण यह पूरा नहीं हो सका।

श्री ब्रह्मा ने अपनी साधना के बल पर अनेक लोगों को आध्यात्मिक मार्ग दिखाया।
परंतु अंततः वे वेलिंगिरि पहाड़ियों में गए, जहाँ उन्होंने अपने सातों चक्रों को सक्रिय करते हुए शरीर त्याग दिया — यह केवल एक महासिद्ध योगी ही कर सकता है।

बयालीस वर्ष की आयु में शरीर त्यागने से पहले उन्होंने कहा था —

“मैं फिर लौटूंगा।”

और वास्तव में, उनका यह वचन सत्य साबित हुआ।

वर्तमान जीवन : सदगुरु जग्गी वासुदेव का पुनर्जन्म

3 सितंबर 1957 को मैसूर (कर्नाटक) में वासुदेव और सुशीला दंपत्ति के घर जन्मे एक बालक को नाम मिला — जगदीश वासुदेव, जिन्हें सब प्यार से जग्गी बुलाते थे।

उन्होंने युवावस्था में एक सफल व्यापारी के रूप में जीवन बिताया।
लेकिन 23 सितंबर 1982 का दिन उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।

उस दिन वे चामुंडी पहाड़ी पर बैठे और ध्यान में चले गए। कुछ ही क्षणों में वे ऐसी अवस्था में पहुँचे जहाँ समय और शरीर की सीमाएँ मिट गईं।
वह अनुभव इतना गहरा था कि जब वे उठे, तो उन्हें लगा —

“मुझे कुछ करना है, लेकिन क्या करना है, यह अभी स्पष्ट नहीं।”

वक्त जे साथ-साथ धीरे-धीरे उन्हें अपने पिछले जन्मों की स्मृति हुई —
बिल्वा, शिवयोगी और श्री ब्रह्मा के रूप में अधूरा छोड़ा गया कार्य अब पूरा होना था।

ध्यानलिंग की स्थापना : तीन जन्मों का सपना पूरा हुआ

कुछ समय बाद सदगुरु को यह स्पष्ट हुआ कि उन्हें वही अधूरा कार्य पूरा करना है — ध्यानलिंग की स्थापना।
कई वर्षों की गहन साधना और हजारों साधकों की मदद से अंततः उन्होंने ध्यानलिंग को कोयंबटूर (Coimbatore) में स्थापित किया।

सदगुरु कहते हैं — “सारा अस्तित्व केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को अनेक रूपों में प्रकट करती है।”

ध्यानलिंग उसी सार्वभौमिक ऊर्जा का भौतिक रूप है, जिससे हर व्यक्ति अपनी आंतरिक चेतना (Inner Science) पर काम कर सकता है।
इसकी ऊर्जा के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन, जन्म और पुनर्जन्म की प्रक्रिया को समझ और नियंत्रित कर सकता है।

निष्कर्ष : सदगुरु का जीवन – एक प्रेरणा (Conclusion)

सदगुरु का जीवन हमें यह सिखाता है कि आध्यात्मिक यात्रा एक जन्म की नहीं होती, बल्कि यह आत्मा की निरंतर खोज है।
उन्होंने तीन जन्मों तक साधना और समर्पण के माध्यम से जो अधूरा कार्य छोड़ा था, वह अंततः ध्यानलिंग की स्थापना के साथ पूरा हुआ।

उनकी कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हर उस आत्मा की है जो स्वयं की सच्चाई को जानने की खोज में निकली है।

अपने इस अनुभव के बारे में सद्‌गुरु जी ने इनर इंजीनियरिंग किताब में विस्तार से बताया है। आप इस लिंक के थ्रू इस किताब के बारे में जानकारी ले सकते हैं।

 

FAQ : सदगुरु के पूर्व जन्म और ध्यानलिंग से जुड़े प्रश्न

Q1. ध्यानलिंग कहाँ स्थित है?
ध्यानलिंग तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित ईशा योग सेंटर में स्थित है।

Q2. ध्यानलिंग का निर्माण किसने किया था?
इसका निर्माण सदगुरु जग्गी वासुदेव ने किया था, जो ईशा फाउंडेशन के संस्थापक भी हैं।

Q3. क्या सदगुरु को अपने पिछले जन्मों की स्मृति है?
हाँ, सदगुरु ने कई बार कहा है कि उन्हें अपने पिछले जन्मों की पूर्ण जागरूक स्मृति है, विशेषकर जब उन्होंने चामुंडी पहाड़ी पर ध्यान किया।

Q4. ध्यानलिंग क्या है?
ध्यानलिंग कोई मूर्ति नहीं, बल्कि एक ऊर्जामय लिंगम है, जो पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। यह हर धर्म और पंथ से परे है।

Q5. Inner Engineering क्या सिखाती है?
यह प्रोग्राम आत्म-ज्ञान, संतुलन, मानसिक शांति और ध्यान के माध्यम से स्वयं को रूपांतरित करने का मार्ग बताता है।

Q6. क्या ध्यानलिंग की ऊर्जा सभी के लिए समान रूप से काम करती है?
हाँ, ध्यानलिंग की ऊर्जा किसी भी व्यक्ति के लिए खुली है — चाहे वह किसी भी धर्म, देश या जाति का क्यों न हो।

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